क्या कहूँ...? आज हिन्दी चिट्ठाकारों के जगत में पहला कदम रख रहा हूँ। खाली पन्ना मुँह बाये देख रहा है। लिखने से पहले मन में विचारों की उथल पुथल मची थी - अब लिखने बैठा हूँ तो सोच रहा हूँ कि क्या लिखूँ...? कल क्रिसमिस का दिन था। इस बरस कुछ उत्साह की कमी देख रहा हूँ हर दिशा में। दूकानें ग्राहकों की राह ताकती हैं और ग्राहक अपनी जेबों में कम होते हुए पैसों को टटोल रहे हैं। टी.वी. पर हर न्यूज़ चैनल केवल आर्थिक मंदी का ही समाचार सुना रही है। जानता हूँ की हर त्योहार तो हवा में तैरता है और हर जन उसे अनुभव करता है; अपनी साँसों में भरता है। सहसा रगों में बहते रुधिर में एक उत्साह भर जाता है और मानव इस त्योहार के विशाल यज्ञ में अपनी आहुति डालता है। पर इस बरस तो हवा में केवल आर्थिक मंदी का समाचार ही तैर रहा है। रगों में बहते ख़ून की गति भी भविष्य की अनिश्चितता के भय से धीमी हो गई है। उत्साह कैसा...? हतोत्साहित है यह समाज! चलो कम से मानसी ने अपने ब्लॉग पर क्रिसमिस के संगीत को अपलोड किया! सुना.. अच्छा लगा। क्या कहूँ...? २००८ का वर्ष अपने अंतिम दिनों को गिन रहा है। बीते वर्ष में कितना सार्थक काम कर पाया हूँ; आँकने के दिन हैं। अपनी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं -
मोड़ पर खड़ा नव वर्ष झाँकता है
अपना लक्ष्य, अपना सामर्थ्य आँकता है
देखता है जो गत वर्ष की दशा
अनमना, मानव की नीयत भाँपता है
लेते हैं हर वर्ष प्रण शांति का -
नव चेतन, नव समाज, नव क्रांति का
मकर आते ही बिखर जाते संकल्प सारे
रह जाता शासन – अशान्ति का, भ्रान्ति का
कोई कहता है नव-शासक नव शासन दूँगा
समता का अधिकार – सम अनुशासन दूँगा
छ्द्म नीति, नीयत होती है इन शठों की,
नहीं कहते – लूट तुम्हारे सर्व संसाधन लूँगा
कहीं सुख-वैभव, कहीं व्यथित हर नर-नारी
शान्ति हेतु कहीं अभी है नर-संहार जारी
हुआ है सुलभ पाना गोला – बारूद वहाँ,
बस – मुट्ठी भर आनाज है पाना भारी
शायद ईराक के युद्ध के आरंभिक दिनों की है। कविता पूरी नहीं कर पाया था कभी। इतने वर्ष बीत गए - लगता है कि आज के लिए ही लिखी गई थी यह कविता। बरस दर बरस बीत गए। न इन्सान बदला न उसके वायदे बदले। क्या कहूँ...! पहली पोस्ट है ब्लॉग जगत में ... निराशा से भरी!यह भी जानता हूँ की प्रसन्न रहना मानव की आवश्यकता है। तभी तो हर सभ्यता, हर काल, हर संस्कृति और हर विषम परिस्थिति में भी मानव उत्सव के बहाने ढूँढ लेता है। जनवरी में अमेरिका में नया शासन आने वाला है। लगता है कि एक नया विचार जन्म ले रहा है। निराशा के काले बादलों के पीछे से एक नई किरण प्रस्फुटित होती दीखती है। आप भी देखिए मैं भी प्रसन्न होने का बहाना ढूँढ रहा हूँ इस निराशावादी लेख के अन्त तक आते आते। अब और क्या कहूँ...?
आपका बहुत बहुत स्वागत है ! कविता अच्छी लगी . क्या क्या करते करते इतना लिख गए :) पहली पोस्ट पर पहली टिप्पणी देना भी मुझे गर्व का विषय लग रहा है . निराश न हों . आशा ही जीवन है !
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है .
जवाब देंहटाएंRespected Suman Sir,
जवाब देंहटाएंHindi blog jagat men apke hardik svagat hai.Apke lekh men post kee gaye kavita marmik hai.asha hai bhavishya men bhee aisee hee achchhee rachnayen padhne ko milengee.Kabhee mere blog par bhee aiye .apka hardik svagat hai.
Poonam
सुमन जी आप का ब्लॉग जगत में स्वागत है...आप बहुत अच्छा लिखते हैं...निराश न हों...रात भर का है महमा अँधेरा...किसके रोके रुका है सवेरा...आप की आशा भरी रचनाएँ पढने की चाह है...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंनिराशा दूर करने को हर कोई स्वयम ही कोई न कोई कारन खोज लेता है. शायद यही जेवण का नियम है
स्वागत है आप का
कलम से जोड्कर भाव अपने
जवाब देंहटाएंये कौनसा समंदर बनाया है
बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
सुंदर रचना संसार बनाया है
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
http://zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
http://chitrasansar.blogspot.com
इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूंऽऽऽऽऽऽऽ
जवाब देंहटाएंऔर बधाई भी देता चलूं...
vaise bhi aap to puraane parichit haiN..
स्वागत सुमन जी। आपका साहित्य कुंज एक श्रेष्ठ वेबमाज़ीन है, अब ब्लाग की भी इतनी अच्छी शुरुआत, सुंदर शब्दों का खेल, सुंदर कविता। आप तो हमें काम्प्लेक्स दे रहे हैं, सर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुमन जी
जवाब देंहटाएंनये वर्ष में आप मुझे यहाँ मिल गये, यह मेरे लिए एक उपलब्धि है.
विश्व भर के साहित्य प्रेमियों की विश्राम स्थली "साहित्य कुंज" पर आकर वास्तव में सुकून मिलता है
. और अब "क्या कहूँ" में भी आपकी अनुपम अभिव्यक्ति . .... बहुत ही अच्छा लगा.
आपकी कविता तो सुन्दर है ही
... यह भी कहाँ किसी कविता से कम है !
पहली पोस्ट है ब्लॉग जगत में ... निराशा से भरी!यह भी जानता हूँ की प्रसन्न रहना मानव की आवश्यकता है। तभी तो हर सभ्यता, हर काल, हर संस्कृति और हर विषम परिस्थिति में भी मानव उत्सव के बहाने ढूँढ लेता है। ... लगता है कि एक नया विचार जन्म ले रहा है। निराशा के काले बादलों के पीछे से एक नई किरण प्रस्फुटित होती दीखती है।"
"एक दिन तो मैं उडा ले जाउँगी आख़िर तुम्हें
थी हवा पैग़ाम ख़ुद काली घटाओं के ख़िलाफ"
आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहा करेगी.
सादर
द्विजेन्द्र द्विज
खुशामदीद।
जवाब देंहटाएंkya baat hai sumanji..der main dekha aap ka likha par durust dekha...
जवाब देंहटाएंbaat such hai ki andhere bahut hai
raat kaali hai , daravni bhi...
aao kheech laaye sooraj kshitij se
haath baandhe baithe rahe kyon,
kyon kare prateeksha subah ki...
......
baat se baat badhegi, kuch to hoga,
sab saath chalenge, rasta hoga...
badhai!!
"साहित्य कुंज" जैसी बेजोड़ अंतर्जाल पत्रिका से तो आपने नेट की दुनिया में धूम मचा ही रखी है, ब्लॉग जगत में भी आपका भरपूर स्वागत है। इसे जारी रखे, अपने को अभिव्यक्त करने के लिए। बधाई !
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